सिद्ध देवी पीठ
मंदिर प्रांगन में ही देवी सिद्ध पीठ के अवशेष आज भी उपलब्ध है जिन्हें पुन: जीर्णोद्धार किया जा रहा है.
कहते हैं एक
बार मुनियों का एक समूह
यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो
सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए।
भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। जब राजा ने ब्रिहासनी यज्ञ
करवाया तो शिव और अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया। नारद जी से सती को पता चला
कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है।
इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दिया कि पिता के यहां
जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नही होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान
शिव ने मना कर दिया। पति की अवहेलना कर के भी वे पिता के यहां चली गईं। लेकिन
वहां जाकर अपने पती का अपमान न सह सकीं और तत्क्षण स्वंय को यज्ञ कुंड में समर्पित
कर दिया।
जब शिव को इस बात का पता चला तो नाराज हो गए। यज्ञ स्थल पर पहुंच कर उन्होंने राजा दक्ष के सिर को काट दिया और सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर ले लिया। सती का शव लेकर वे पूरे ब्रह्मांड का परिभ्रमण करने लगे। इस बात का पता सभी देवों को चला तो हाहाकार मच गया कि अगर भगवान शिव तांडव मुद्रा में आ गए तो संसार का विनाश हो जाएगा। विकट परिस्थिति से बचने के लिए भगवान विष्णु सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट कर धरती पर गिराते गए। लेकिन जहां-जहां सती के शव प्रमुख अंग एवं वस्त्र आभूषण गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। आज पूरे ब्रह्मांड में बावन शक्तिपीठ हैं
धरती पर जिन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति के पीठ स्थान माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती है। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया है, वंदनीय बना दिया है।
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है।
साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है।
जब शिव को इस बात का पता चला तो नाराज हो गए। यज्ञ स्थल पर पहुंच कर उन्होंने राजा दक्ष के सिर को काट दिया और सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर ले लिया। सती का शव लेकर वे पूरे ब्रह्मांड का परिभ्रमण करने लगे। इस बात का पता सभी देवों को चला तो हाहाकार मच गया कि अगर भगवान शिव तांडव मुद्रा में आ गए तो संसार का विनाश हो जाएगा। विकट परिस्थिति से बचने के लिए भगवान विष्णु सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट कर धरती पर गिराते गए। लेकिन जहां-जहां सती के शव प्रमुख अंग एवं वस्त्र आभूषण गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। आज पूरे ब्रह्मांड में बावन शक्तिपीठ हैं
धरती पर जिन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति के पीठ स्थान माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती है। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया है, वंदनीय बना दिया है।
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है।
साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है।
इसी प्रकार पौराणिक मान्यताओ के अनुसार हस्तिनापुर
में देवी का दक्षिण गुल्म गिरा था. समय के साथ ये स्थान धूमिल हो गया था परन्तु यहाँ
कि खुदाई में मिले मंदिर के अवशेष उस ही सिद्ध देवी पीठ के अवशेष हैं.
कामख्या सिद्ध पीठ के अवशेष
धर्म ग्रंथो में कामख्या सिद्ध पीठ का वर्णन